Counsellor | Writer | Poet | Lyricist | Composer | Singer.
JMFA 2017 Winner of the best lyricist.
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ऐ मनीष तू कैसे ग़म भुलायेगा
मयखानों में रोज़ मय मशरूब कर अपने ग़म भुलाते हैं मय – नोश ऐ “मनीष” तू कैसे ग़म भुलायेगा, तू मय को लबों से छूता जो नहीं ~ मनीष शर्मा
बिखर जो रही है रोशनी
मिटा देगी ये दिवाली, तमस के सारे अँधेरे बिखर जो रही है रोशनी, हर एक दरीचे से ~ मनीष शर्मा
कुछ क़दम के फ़ासले
कुछ क़दम के फ़ासले से मुँह बनाकर के वापिस लौट गयी ज़िंदगी अब तो तन्हा रहने की आदत सी ही डाल ली है मैंने ~ मनीष शर्मा
तुम मुझे रुसवा कर गयी ज़माने में
एक टक ज़ज्बातों को बयाँ कर रही थी मेरी ये दो आँखें नज़रें चुराकर, तुम मुझे रुसवा कर गयी ज़माने में ~ मनीष शर्मा
सभी जानते हैं
सभी जानते हैं कि सही और ग़लत में फ़र्क़ है क्या ना जाने क्यों फिर भी सभी ग़लत होना चाहते हैं ~ मनीष शर्मा
सूद हो किसी वैश्य का
इक दर्द घटता है तो दूजा बढ़ता है दर्द ना हुआ कोई सूद हो किसी वैश्य का ~ मनीष शर्मा