Counsellor | Writer | Poet | Lyricist | Composer | Singer.
JMFA 2017 Winner of the best lyricist.
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क़दम क़दम पर झूठ
क़दम क़दम पर झूठ बोलता रहता हूँ मैं अब आईने से नज़र मिलाऊँ भी तो कैसे ~ मनीष शर्मा
मेरी अंगुलियाँ
ज़िंदगी तब बड़ी ही सुलझी-सुलझी हुई सी लगती थी तुम्हारी उलझी ज़ुल्फों को जब सुलझाती थीं, मेरी अंगुलियाँ ~ मनीष शर्मा
मैं इश्क की ख़ुराक पर ही ज़िंदा हूँ
गुलाबी नगरी का वाशिदां हूँ मेहरम, फ़ितरत से नहीं रिंदा हूँ चूम लेने दो गुलाब सरीके लबों को मैं इश्क की ख़ुराक पर ही ज़िंदा हूँ ~ मनीष शर्मा
आओ तो फफ़ककर रो दें ज़रा
वो अश्क़, जो आँखों की कोर पर आकर ठहर गये थे इंतज़ार में है तुम्हारे, आओ तो फफ़ककर रो दें ज़रा ~ मनीष शर्मा
बस रात ही रात रहने दे
ऐ ख़ुदा, बस रात ही रात रहने दे हुई जो सहर महबूब चला जायेगा ~ मनीष शर्मा
कोई करता है ग़लती स्थूल
कोई करता है ग़लती स्थूल, तो कोई करता है ग़लती सूक्ष्म पर सफ़ेद चोलों में मन , किसी का भी, काला नहीं दिखता ~ मनीष शर्मा