Counsellor | Writer | Poet | Lyricist | Composer | Singer.
JMFA 2017 Winner of the best lyricist.
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सूद हो किसी वैश्य का
इक दर्द घटता है तो दूजा बढ़ता है दर्द ना हुआ कोई सूद हो किसी वैश्य का ~ मनीष शर्मा
ख़ुद से भी फ़ासले
तेरी क़ुरबत में रहने दे मुझे ख़ुद से भी फ़ासले मेरे मुक्कदर में है बहुत ~ मनीष शर्मा
जीवन है खेला
जीवन है खेला, हम तुम खिलौने आज जो खेला, कल उसी ने तोड़ा ख़्वाबों में महल, हक़ीकत में झुग्गी ख़ामख़्वाह, बेमुकाम ख़ानाबदौश सफ़र ~ मनीष शर्मा
मेरा कोई नहीं यहाँ
बेग़ाना हुआ ये शहर, मेरा कोई नहीं यहाँ जो कल जान जान कहता फिरता था ज़माने में वो आज अन्जान कहने लगा है ~ मनीष शर्मा
ये दिल भी ढूँढ रहा है इक लिबास
जिस्म के जख़्मों को छिपा लिया, लिबास की आड़ में ये दिल भी ढूँढ रहा है इक लिबास, किस बाज़ार में लाऊँ ~ मनीष शर्मा
उसने मुझे छोड़ दिया
लाख जतन पर भी पा ना सका जब वो मुझे तो नुक़्स निकाल मुझमें उसने मुझे छोड़ दिया ~ मनीष शर्मा