Counsellor | Writer | Poet | Lyricist | Composer | Singer.
JMFA 2017 Winner of the best lyricist.
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दर्शन झरोखों से
तुम किंवाड़ खोलो तो भीतर आऐं दर्शन झरोखों से अब ख़लता है हमें ~ मनीष शर्मा
ज़रूरतें जब बेवजह
ज़रूरतें जब बेवजह ख़्वाहिशों के लिबास पहन लेती है मुफ़लिसी मुक़द्दर बन इंसान को बे-लिबास कर देती है ~ मनीष शर्मा
मैंने ग़ैरों के लिए
मैंने ग़ैरों के लिए अपार ख़ुशियाँ ख़रीदी हैं अपनी ख़ुशियों को कौड़ी के दाम बेचकर ~ मनीष शर्मा
ख़ुदा के हाथों छोड़ दिया है मैंने
इंसाफ़ को वक़्त और ख़ुदा के हाथों छोड़ दिया है मैंने इंसान तो चंद काग़ज़ के टुकड़ों में बिकने लगा है यहाँ ~ मनीष शर्मा
अब वो मैं हूँ ही नहीं
जानाँ मैं छोड़ आया हूँ ख़ुद को कहीं तुम्हारे पास जो मैं दिख रहा हूँ दरअसल अब वो मैं हूँ ही नहीं ~ मनीष शर्मा
तू सामने तो है
तू सामने तो है मेरे पर पास नहीं एकाश वक़्त वहीं ठहर गया होता ~ मनीष शर्मा

