Counsellor | Writer | Poet | Lyricist | Composer | Singer.
JMFA 2017 Winner of the best lyricist.
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वो ज़ालिम मुकर गई
वो ज़ालिम मुकर गई कि उसे मोहब्बत रही मुझसे भीड़ पहरों तक घूरती रही मुझे गुनहगार की तरह ~ मनीष शर्मा
चुनाव आते हैं
ख़ास लोग भी, आम हो जाते हैंजब भी मुल्क में, चुनाव आते हैं ~ मनीष शर्मा
कोई भेद ना खोलो
रिश्ते गिरगिट हैं ज़रूर संग बदलेंगें टूट जाने के बाद कोई भेद ना खोलो बेहतर है चुप ही रह लो कल सरे आम ना हो जाओ तुम ~ मनीष शर्मा
पैरों में बेड़ियाँ डाली गई उसके
क़दम क़दम पर पैरों में बेड़ियाँ डाली गई उसके वरना हर क़दम समाज को धूल सा उड़ा देती वो (स्त्री) ~ मनीष शर्मा
जहाँ मुझे नासा और गूगल भी ना ढूँढ सके
मैं अपनी तन्हाई के संग वहाँ जाना चाहता हूँ जहाँ मुझे नासा और गूगल भी ना ढूँढ सके ~ मनीष शर्मा
मेरी हैसियत पूछी सभी ने
ना ख़ैरियत पूछी किसी ने ना कैफ़ियत पूछी किसी ने जिस गली से भी मैं गुज़रा मेरी हैसियत पूछी सभी ने ~ मनीष शर्मा