Counsellor | Writer | Poet | Lyricist | Composer | Singer.
JMFA 2017 Winner of the best lyricist.
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ग़म खरीदता हूँ
मैं व्यापारी सरफिरा हूँ, ज़िंदगी तोलता हूँ ख़ुशियाँ बेचकर के, ग़म खरीदता हूँ ~ मनीष शर्मा
सिर्फ़ एक ही दिन
सिर्फ़ एक ही दिन पर हक़ क्यों हो तुम्हारा ज़िंदगी के सारे लम्हें खुलकर के जियो तुम (स्त्री) ~ मनीष शर्मा
मैं दर्द ए दिल बयाँ
मैं दर्द ए दिल बयाँ, अश्क़ों से नहीं, लफ़्ज़ों से करता हूँ मैंने ज़माने को अश्क़ों पे हँसते, लफ़्ज़ों पे रोते देखा है ~ मनीष शर्मा
तेरी बज़्म में
ख़्यालों से ख़ाली होकर के लौटा हूँ मैं फिर कोई रात ना गुज़रे तेरी बज़्म में ~ मनीष शर्मा
तुम मुझे रुसवा कर गयी ज़माने में
एक टक ज़ज्बातों को बयाँ कर रही थी मेरी ये दो आँखें नज़रें चुराकर, तुम मुझे रुसवा कर गयी ज़माने में ~ मनीष शर्मा
हम रहेंगे या नहीं रहेंगे
ज़िंदगी मन फ़रीद लगती है ये जान लेने के बाद हम रहेंगे या नहीं रहेंगे दुनिया यूँ ही चलती रहेगी ~ मनीष शर्मा