Counsellor | Writer | Poet | Lyricist | Composer | Singer.
JMFA 2017 Winner of the best lyricist.
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पैरों में बेड़ियाँ डाली गई उसके
क़दम क़दम पर पैरों में बेड़ियाँ डाली गई उसके वरना हर क़दम समाज को धूल सा उड़ा देती वो (स्त्री) ~ मनीष शर्मा
ऐ मनीष वक़्त तुझे तराशना चाहता है
जब तक कि तुझे तेरा जायज़ मुक़ाम मिल नहीं जाता आख़िर ऐ “मनीष” वक़्त तुझे तराशना चाहता है आज़माईश से पहले ~ मनीष शर्मा
मैं कुछ ख़्वाब बुनता हूँ
रात भर मूँदकर के आँखें मैं कुछ ख़्वाब बुनता हूँ सवेरे की रोशनी सारे ख़्वाबों का क़तरा क़तरा जला देती हैं ~ मनीष शर्मा
बस धोखा ही दिया है
आज से, अब से सारे फ़ैसले सिर्फ दिमाग़ से दिल ने तो हर क़दम पर, बस धोखा ही दिया है ~ मनीष शर्मा
इंसान ढूँढ रहा हूँ मैं
कब से चारों दिशाओं में अब तक नहीं मिला कैसे यक़ीन करूँ फ़रिश्ते हुए थे कभी इसी धरा पर ~ मनीष शर्मा
नैतिक है क्या
अख़्लाक़ है क्या और क्या है ग़ैर अख़्लाक़ अज़ीम से नहीं, दरमियानी तबके से पूछो नैतिक है क्या और क्या है अनैतिक उच्च से नहीं, ये मध्यम वर्ग से पूछो ~ मनीष शर्मा
