Counsellor | Writer | Poet | Lyricist | Composer | Singer.
JMFA 2017 Winner of the best lyricist.
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पुख़्ता वजह ना हो
कोई भी किसी को तब तक याद नहीं रखता जब तक याद रखने की पुख़्ता वजह ना हो ~ मनीष शर्मा
समाज को व्यक्ति के बारे में
समाज को व्यक्ति के बारे में आधी जानकारी होती है और उसी आधी जानकारी में ख़ुद की आधी राय जोड़ते हुए पूरी राय गढ़ लेता है समाज। बस, इसी तरह अधिकतर व्यक्तियों का चरित्र चित्रण करता है समाज। ~ मनीष शर्मा
ज़िंदगी की शाम
ज़िंदगी की शाम कब कहाँ और कैसे ढलेगी, कोई भी तो जाने ना कोई ठोकर खाकर संभल जाता है, कोई ज़िंदगी खोकर भी नहीं ~ मनीष शर्मा
कभी कोई उदास ना दिखेगा
तारीख़ एक के जैसी हो, गर तारीख़ तीस कभी कोई उदास ना दिखेगा, ज़िंदगी में ~ मनीष शर्मा
ज़ुबाँ से तू ना खोल
दुनिया को हमारे बारे में केवल उतना ही ज्ञात होना चाहिए। जितना हम उन्हें बताते हैं। ज़रूरत से ज़्यादा हमारे बारे में अगर दुनिया जानती है या पता लगाती है तो हमारी निजता किसी दिन सरे आम हो सकती है। बंदे जब भी बोल, तोल-तोल के बोल, दिल में दबे राज़, ज़ुबाँ से तू ना…
एक मुदर्रिस ना मिला होता
एक मुदर्रिस ना मिला होता गर हमें ज़िंदगी में हरगिज़ अक़्ल से वाकिफ़ ना हो पाते हम, तुम ~ मनीष शर्मा