तुम ही से हैं हम
दाता ने
दुनिया बनाई
आदमी बनाये
औरत बनाई
प्यार बनाया
क़ायनात बनाई
ख़ुश रहने के लिए
प्रकृति के अनुपम
उपहार बनाये
पर आदमी ने
क्या किया
धुंधले सपनों
के भौंतिक
साधन बनाये
स्वार्थ के ऊँचे
महल बनाये
महल को उसने
लोभ-लालच
हिंसा-नफ़रत
द्वेष-ईर्ष्या
बलात्कार
झूठ-मकार
दोगले मुखोटों
से अलंकृत किया
भूल गया आदमी
किसने उसे बनाया
जिसने उसे बनाया
उसका नक्श मिटाया
भूल गया आदमी
औरत मिल्कियत
नहीं है उसकी
औरत दाता की
सुंदर नेमत है
नूर का दरिया है
सृजन की देवी है
उसी के सृजन की
वज़ह से आदमी ने
जीवन पाया
दुनिया देखी
खेद इस बात का
आज उसी औरत
को भोग विलास
का साधन समझ
रौंदता है
कुचलता है
करके बेआबरू
आज़ाद जानवर सा
समाज में घूमता है
घूमता है तब तक
जब तक कि अगला
शिकार उसको
मिल नहीं जाता
घूमता है तब तक
जब तक कि उसको
संरक्षण होता है
उनका जिनके लिए
मतदाता से ज़्यादा कुछ
होते नहीं हैं लोग
इंतज़ार कोई करे
तो आख़िर कितना करे
हालात बदलने का
हालात तो बद्द से बदत्तर
हुए जा रहे हैं
गलतियाँ भी अब
आहिस्ता आहिस्ता
गुनाह हुए जा रहे हैं
इंसानों की सूरत में
आदमी जानवर ही
हुए जा रहा है
भरोसे किसी के
अब बैठो मत तुम
जागो नींद से
शंखनाद करो तुम
तुमसे है जहान सारा
ये ऐलान करो तुम
आज़ादी एक नई
हुँकार भरो तुम
निकल पड़ो
घर से बाहर तुम
ये दिखाने को कि
अब नहीं सहोगी तुम
चुप नहीं रहोगी तुम
करेगा कोई अन्याय
और अत्याचार
तो उसका जवाब
मुंहतोड़ दोगी तुम
अब ना झुकोगी तुम
अब रूकोगी तुम
करेगा कोई अन्याय
या अत्याचार
तो उसका जवाब
मुंहतोड़ दोगी तुम
हाँ, शक्ति हो तुम
तुम ही से हैं हम
हाँ, स्त्री हो तुम
तुम ही से हैं हम।
~ मनीष शर्मा