“पापा”
पापा जब मैं लड़खड़ाता
गिरता उठता चलने में
अपनी अंगुली पकड़ाकर
मुझे सम्भाला आपने
पापा मुझे ज्ञान ना था
सही गलत का बचपन में
बचपन का बोध कराकर
सही राह दिखाई आपने
कभी अच्छा जो किया मैंने
तो प्यार भी किया आपने
कभी गलती भी जो की मैंने
तो सबक भी सिखाया आपने
आप रहे विकट परिस्थितियों में
मुझे ना इल्म होने दिया
आप रहे घिरे मुश्किलों में
मुझे ना पता होने दिया
रात दिन की जद्दोजहद
दो जून रोटी की खातिर
अपना सूकूँन गंवाया
मुझे नींद देने की खातिर
अपनी खुशियाँ दावँ लगा
हर ग़म सहा आपने
जो कुछ भी मांगा मैंने
मुझे दिया सब आपने
आपका सहज़ व्यक्तित्व
याद हैं और सदा रहेगा
आप जैसा बन पाऊँ मैं
ये मेरे लिए आसाँ ना रहेगा
जितना दर्द सहा आपने
पापा मुझे प्यार हैं देने में
कोई कमी ना रखूँगा बाकी
पापा मैं आपको प्यार देने में
कोई कमी ना रखूँगा बाकी
पापा मैं आपको प्यार देने में
~ मनीष शर्मा