किन रंगों को मैं उछालूँ ?
होली के पर्व पर मेरी ये रचना सरहद पर मुस्तैद जवानों को समर्पित।
किन रंगों को मैं उछालूँ ?
क्या ? उन रंगों को मैं उछालूँ
जिन रंगों से माँ की ओढ़नी को
बन रंगरेज़ा नितदिन रंगा करता था
किन रंगों को मैं उछालूँ ?
क्या ? उन रंगों को मैं उछालूँ
जो बचपन में दोस्तों संग
होली में खेला करता था
किन रंगों को मैं उछालूँ ?
क्या ? उन रंगों को मैं उछालूँ
जो प्रेम की धनक से थे बुने
और जिनसे प्रेयसी को भर दिया करता था
किन रंगों को मैं उछालूँ ?
क्या ? उन रंगों को मैं उछालूँ
जिनसे मैंने ज़िंदगी का
सुनहरा ग़ुलाल बनाया था
मैं प्रहरी सीमा का
मैं लाल रंग को ही उछालूँ
जो मेरी रगों में खौलता है
मैं प्रहरी सीमा का
मैं लाल रंग को ही उछालूँ
जब दुश्मन घात में बैठा हो
मैं प्रहरी सीमा का
मैं लाल रंग को ही उछालूँ
जब काफ़िर वतन का सीना छलनी करता हो।
जय हिंद।
~ मनीष शर्मा