दर्द लिखने की आदत
दर्द लिखने की आदत सी हो गई है मुझे
दिल के ज़ख्म नासूर जो बन चुके हैं मेरे
कागज़ भी अब ज़ख़्मी नज़र आने लगा है
क़लम भी रक्त की स्याही से जो भरी है मेरे
जिसे ज़माना बादलों की गर्जना कहता है
वो आहों के कराहने की आवाज़ हैं मेरे
हज़ारों तोहमतें लगा दो मुझ पर ऐ दुनिया वालों
इश्क़ ग़र है गुनाह तो ये इल्ज़ाम सर पर है मेरे
उस बेवफ़ा का नक़्श ओ निशाँ मिटा चुका हूँ मैं
ये ख़्याल किसका जो ज़ार-ज़ार जहन में आता है मेरे
हसरतें अब मेरी सारी नाक़ाम कर दे मौला
वो नहीं हैं शामिल इबादतों और दुआओं में मेरे
~ मनीष शर्मा