बचपन
ना जाने किस दिशा
किस डगर जा रहा है
हिंदुस्तान का बचपन
पढ़ने लिखने की उम्र में
गलियों कूचों का कचरा
बीन रहा है बचपन
तन पर कपड़े मैले कुचैले
कंधो पे लादे फटे कट्टे लिए
भविष्य ढूँढ रहा है बचपन
बेचकर के कचरा
कोड़ियों के दाम में
बिक रहा है बचपन
पैरों के तलवे डामर हुए
बिन जूतों के दर बदर
खाक छान रहा है बचपन
खान पान मौज मस्ती
सारी बातें ख़्वाबी ख़्वाबी
पेटों के पट्टी बांध रहा है बचपन
प्रतिस्पर्धा की दौड़ में
सब जीत रहे है
पर हार रहा हैं बचपन
मुल्क़ हथियार घिस रहे है
यहाँ बिन हथियार
ख़ुद ही से लड़ रहा है बचपन
~ मनीष शर्मा