Batohiya बटोहिया

दर्द लिखने की आदत

दर्द लिखने की आदत सी हो गई है मुझे दिल के ज़ख्म नासूर जो बन चुके हैं मेरे कागज़ भी अब ज़ख़्मी नज़र आने लगा है क़लम भी रक्त की स्याही से जो भरी है मेरे जिसे ज़माना बादलों की गर्जना कहता है वो आहों के कराहने की आवाज़ हैं मेरे हज़ारों तोहमतें लगा दो…

स्त्री हूँ मैं, स्त्री

स्त्री हूँ मैं, स्त्री वात्सल्य से भरी गागर हूँ मैं ज्ञान से परिपूर्ण सागर हूँ मैं स्वभाव से चंचल नदी हूँ मैं काया से कोमल परी हूँ मैं प्रेम की बरखा हूँ मैं मोह का झरना हूँ मैं कड़ी धूप में छाँव हूँ मैं भरे शहर और गाँव हूँ मैं मेरे रूप स्वरूप हैं निराले…

जीने के लिये चंद साँसें चाहिये

किसी को ज़मीन चाहिये तो किसी को आसमान चाहिये किसी को दौलत चाहिये तो किसी को शौहरत चाहिये किसी को युद्ध चाहिये तो किसी को नफ़रत चाहिये किसी को राजनीति चाहिये तो किसी को आरक्षण चाहिये उस शख़्श से पूछो ज़िंदगी के मायने जिसे पेट भरने के लिये एक सूखी रोटी चाहिये उस शख़्श से…

आओ नववर्ष पर नव संकल्प करें हम

गतवर्ष ने मूँदे नयन नववर्ष ने खोले नयन गतवर्ष में थी कुछ ख़ुशियाँ और थे चुटकी भर कुछ ग़म ख़ुशियों से भर ली हमने झोली ग़मों की जला दी हमने होली आज क्षितिज पर हर्ष है उल्लास है नववर्ष का का महारास हैं आज नभ पर भी हर्ष है उल्लास है नववर्ष का का महारास…

चलो चलें दीप जलाने

चलो चलें उन बस्तियों में दीप जलाने जहाँ के दिये दीपावली पर भी अंधियारा फैलाते हैं चलो चलें उन बस्तियों में रंग भरने जहाँ के आँगन बेरंग सूने रह जाते हैं चलो चलें उन बस्तियों में पटाखे बांटने जहाँ के बच्चे दीपावली पर फटे अख़बार जलाते हैं चलो चलें उन बस्तियों में जहाँ के लोग…

आओ खेलें होली

रंजोग़म भुलाकर छलक रहे हैं रंग सारे प्यारे प्यारे खुशियों से लबालब छलक रहे है रंग सारे प्यारे प्यारे मस्ती में सराबोर है आलम सारा अलहदा सा है अल्हड़ अन्दाज़ न्यारा फ़िज़ा में जो रंग है इस मर्तबा ऐसा पहले ना था घटा में जो उमंग है इस मर्तबा ऐसा पहले ना थी आओ भर…

नारी तू शक्ति है

जाने कितने युग है बीते जाने कितनी सदियाँ हर इक युग है तेरी गाथा हर इक सदी बस तेरी माया तेरा वर्चस्व तू ही है दूजा ना कोई ओर तेरे आगे नतमस्तक है दिशायें भी चारों ओर जितनी शीतलता है तुझमें उतनी भीष्ण उष्णता जितनी ख़ामोशी है तुझमें उतनी क्रोधाग्नि की ज्वाला जितना दर्द तू…

“पापा”

फादर्स डे 16.06.2013 केअवसरपरमेरीएकमौलिककृतिकविता (पापा) सरल शब्दों में आपके समक्ष रख रहा हूँ, उम्मीद करता हूँ आपको पसन्द आयेगी। पापा जब मैं लड़खड़ाता गिरता उठता चलने में अपनी अंगुली पकड़ाकर मुझे सम्भाला आपने पापा मुझे ज्ञान ना था सही गलत का बचपन में बचपन का बोध कराकर सही राह दिखाई आपने कभी अच्छा जो किया मैंने तो प्यार भी…

‘‘माँ‘‘

मदर्स डे 11.05.2013 केअवसरपरमेरीएकमौलिककृतिकविता (‘‘माँ‘‘) सरल शब्दों में आपके समक्ष रख रहा हूँ, उम्मीद करता हूँ आपको पसन्द आयेगी।   ‘‘माँ‘‘ जिन्दगी है मेरी ‘‘माँ‘‘ दुनिया है मेरी मुझे झूला झुलाती हैं माँ खुद आँखों में लिए नींद रात बिताती हैं माँ खुद गीले में सोती है मुझे सूखे पे सुलाती हैं माँ खुद भूखी रह जाती हैं मेरा…

मनभावन होली

उड़े गुलाल चहुमुखी सतरंगी, पचरंगी सारे जहाँ को अपने रंग से रंगती लाल-गुलाबी, पीले-नीले रंगो की फुहार खुशी उल्लास से भरी मनरंगी बहार जन-जन के मन में प्यार का रंग भर दे हर एक के मन को उमंग के रंग से भर दे फिज़ाओं में मदमस्त रंगों का नशा फैले फूलों संग कलियाँ भी खूशबू…