Sher o shayari by manish sharma

मुलाज़मत व्यक्ति को घमंडी बनाती है

मुलाज़मत व्यक्ति को घमंडी बनाती है किन्तु व्यापार विनम्र और स्वाभिमानी ~ मनीष शर्मा

ऐ मनीष वक़्त तुझे तराशना चाहता है

जब तक कि तुझे तेरा जायज़ मुक़ाम मिल नहीं जाता आख़िर ऐ “मनीष” वक़्त तुझे तराशना चाहता है आज़माईश से पहले ~ मनीष शर्मा

पैरों में बेड़ियाँ डाली गई उसके

क़दम क़दम पर पैरों में बेड़ियाँ डाली गई उसके वरना हर क़दम समाज को धूल सा उड़ा देती वो (स्त्री) ~ मनीष शर्मा