Sher o shayari by manish sharma

पक्की दोस्ती करते हैं

बिन माचिस लगी दुश्मनी की आग में इंसान ज़िंदा जला करते हैं क्या जायेगा साथ ओ बन्दे आ हम तुम पक्की दोस्ती करते हैं ~ मनीष शर्मा

मैं इश्क की ख़ुराक पर ही ज़िंदा हूँ

गुलाबी नगरी का वाशिदां हूँ मेहरम, फ़ितरत से नहीं रिंदा हूँ चूम लेने दो गुलाब सरीके लबों को मैं इश्क की ख़ुराक पर ही ज़िंदा हूँ ~ मनीष शर्मा

ज़िंदा ही हूँ मैं

साँसो का चलना, अगर ज़िंदगी है तो फ़िर बेशक़, ज़िंदा हूँ मैं दिल का धड़कना, अगर ज़िंदगी है तो फ़िर बेशक, ज़िंदा हूँ मैं तुझसे जुदा होके जीना, अगर ज़िंदगी है तो फ़िर बेशक, ज़िंदा ही हूँ मैं ~ मनीष शर्मा

हार जाने की ख़ातिर

जग जीता था जिन्होनें मृत्यु उन्हें परास्त करके जीत गई सब कुछ जीतना चाहता हूँ मैं भी एक दिन सब कुछ हार जाने की ख़ातिर ~ मनीष शर्मा