चरित्र का आंकलन दैहिक ना होकर
अक़्सर हम लोग समाज में देखते हैं, कि किसी भी व्यक्ति (महिला व पुरूष) को सामाजिक, आर्थिक रूप से तोड़ने, उसको ख़ुद की ही नज़र में गिराने और उसकी प्रतिष्ठा ख़त्म करने के उद्देश्य से चरित्र हनन (Character Assassination) किया जाता रहा है। कईं बार चरित्र हनन वास्तविक होता है, कईं बार झूठा। जहाँ वास्तविक होता है, वहाँ व्यक्ति थोड़ा लड़खड़ाकर फिर सम्भल जाता है। लेकिन व्यक्ति सबसे ज़्यादा तब टूटता है, जब चरित्र हनन झूठा होता है या व्यक्ति पर अनर्गल फ़ब्तियों का कसा जाना या टिप्पणियों के साथ उसे पारिवारिक और सामाजिक ज़िल्लत सहनी पड़ती है। व्यक्ति झूठे चरित्र हनन में एक ऐसे कृत्य की सज़ा भोगता है जो कृत्य उसने नहीं किया होता है।
वास्तविक चरित्र हनन के कुछ दिनों के बाद स्थिति सामान्य हो जाने पर व्यक्ति पहले की ही तरह अपना जीवन सामान्य रूप से जीने लगता है, व्यक्ति ख़ुद उसके कृत्य भूल जाता है और लोग भी भूल जाते हैं कि उक्त व्यक्ति चरित्रहीन है। लेकिन झूठे चरित्र हनन की वजह से व्यक्ति का पारिवारिक और व्यवसायिक जीवन बहुत प्रभावित होता है या यूँ कहें कि वो व्यक्ति ख़ुद को अपने घर वालों से और अपने व्यवसायिक कर्मचारियों से भी नज़र मिला पाने के क़ाबिल नहीं समझता। साथ ही व्यक्ति मानसिक और भावनात्मक आघात भी सहता है।
प्रायः देखा गया है कि समूचे विश्व में सच्चे-झूठे चरित्र हनन की घटनाओं से कभी ना कभी, कोई ना कोई प्रभावित होता आया है। ‘‘जीत ना सके अगर नैतिकता के आधार पर, तो चरित्र पर कीचड़ उछाल दिया उसने।‘‘ मेरे इस कथन को इस प्रकार से समझा जा सकता है कि चरित्र हनन की घटनाओं से अधिकतर महिलायें प्रभावित होती हैं। समाज द्वारा उन्ही को एक तरफ़ा दोषी ठहरा दिया जाता है, क्योंकि समाज पुरूष प्रधान है, जिसमें पुरूष ने अपने बनाए गये नियमों में शिथिलता बरती है और शायद ऐसा इसलिए भी है कि स्त्री काया और स्वभाव से सुकोमल है। व्यवहार से सरल लोगों को ये समाज हमेशा से दबाता, कुचलता आया है, दबा और कुचल रहा है और दबाता और कुचलता रहेगा।
व्यक्ति जीवन में सभी तरह के कष्ट झेल सकने में सक्षम होता है। चाहे किसी भी तरह का कष्ट क्यों ना हो। मगर चरित्र पर लगा झूठा दाग़ व्यक्ति के लिए जीते जी मृत्युशय्या के समान है।
आज कल के डिजिटल युग में जितना कुछ पाया जा सकता है, उससे कईं गुना ज़्यादा किसी एक ग़लती की वज़ह से खोया जा सकता है। मतलब ‘‘जिसे कमाने में उम्र लगेगी सारी, उसे खोने में वक़्त नहीं लगेगा ज़रा सा भी‘‘। अंग्रेजी में बिली ग्राहम की लिखी एक कहावत है “When wealth is lost, nothing is lost; when health is lost something is lost; when character is lost, all is lost.”
इस कथन पर मैं सोचता हूँ कि “यदि व्यक्ति के चरित्र का आंकलन दैहिक ना होकर, वैचारिक होता, तो झूठा लाँछन लगाकर किये जाने वाले चरित्र हनन पर कोई व्यक्ति, इतनी शर्मिंदगी या ज़िल्लत महसूस नहीं करता, जितना कि व्यक्ति झूठा लाँछन लगाकर किये जाने वाले दैहिक चरित्र हनन पर करता है।“
वैसे एक सवाल ये भी कि चरित्र केवल यौनांग ही क्यों ?
~ मनीष शर्मा