Author: Manish Sharma

Counsellor | Writer | Poet | Lyricist | Composer | Singer. JMFA 2017 Winner of the best lyricist.

इश्क के समंदर गहरे हैं

किस मोड़ पे आके हम ठहरे हैं जहाँ ज़माने के लाख पहरे हैं चलो हम तुम वहाँ चलें जहाँ इश्क के समंदर गहरे हैं ~ मनीष शर्मा

ज़रूरतों ने यायावर बना दिया

इक मुक्कम्मल ठिकाना, हमेशा चाहता रहा ये मन इक मुक्कम्मल ठिकाना, हमेशा ढूँढता रहा ये मन कमबख़्त ज़रूरतों ने यायावर बना दिया ~ मनीष शर्मा

क्या फर्क़ रह जायेगा

अक्सर सोचता हूँ क्यों ना बदल लूँ मैं भी अपनी फ़ितरत एकाएक ख़्याल रूकता है ज़हन में क्या फर्क़ रह जायेगा तुझमें और मुझमें ~ मनीष शर्मा