Counsellor | Writer | Poet | Lyricist | Composer | Singer.
JMFA 2017 Winner of the best lyricist.
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दुनिया ये काम
मैं अब ख़ुद में कभी, कोई नुक़्स नहीं ढूँढता दुनिया ये काम मुफ़्त में, बख़ूबी कर लेती है ~ मनीष शर्मा
मज़हब की दो दीवारों में
जो पाठ पढ़ाते हैं इंसानियत का ज़माने भर में वही आज मज़हब की दो दीवारों में बांटने लगे हैं ~ मनीष शर्मा
कभी कोई उदास ना दिखेगा
तारीख़ एक के जैसी हो, गर तारीख़ तीस कभी कोई उदास ना दिखेगा, ज़िंदगी में ~ मनीष शर्मा
जहाँ मुझे नासा और गूगल भी ना ढूँढ सके
मैं अपनी तन्हाई के संग वहाँ जाना चाहता हूँ जहाँ मुझे नासा और गूगल भी ना ढूँढ सके ~ मनीष शर्मा
सात प्यारे रंगों से मिलकर के बनी हैं होली
सात प्यारे रंगों से मिलकर के बनी हैं होली ख़ुशियों से तू मेरी, मैं तेरी आ भर दें झोली ~ मनीष शर्मा
तेरे ख़्यालों को ही
तेरे ख़्यालों को ही अल्फ़ाज़ की शक़्ल दी मैंने तुम ना आती ग़र ज़िंदगी में तो मिलन जुदाई ख़ुशी ग़म से वाक़िफ़ ना होता मैं ~ मनीष शर्मा