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    चलो चलें उन बस्तियों में दीप जलाने जहाँ के दिये दीपावली पर भी अंधियारा फैलाते हैं चलो चलें उन बस्तियों में रंग भरने जहाँ के आँगन बेरंग सूने रह जाते हैं चलो चलें उन बस्तियों में पटाखे बांटने जहाँ के बच्चे दीपावली पर फटे अख़बार जलाते हैं चलो चलें उन बस्तियों में जहाँ के लोग…

  • जीने के लिये चंद साँसें चाहिये

    किसी को ज़मीन चाहिये तो किसी को आसमान चाहिये किसी को दौलत चाहिये तो किसी को शौहरत चाहिये किसी को युद्ध चाहिये तो किसी को नफ़रत चाहिये किसी को राजनीति चाहिये तो किसी को आरक्षण चाहिये उस शख़्श से पूछो ज़िंदगी के मायने जिसे पेट भरने के लिये एक सूखी रोटी चाहिये उस शख़्श से…

  • नारी तू शक्ति है

    जाने कितने युग है बीते जाने कितनी सदियाँ हर इक युग है तेरी गाथा हर इक सदी बस तेरी माया तेरा वर्चस्व तू ही है दूजा ना कोई ओर तेरे आगे नतमस्तक है दिशायें भी चारों ओर जितनी शीतलता है तुझमें उतनी भीष्ण उष्णता जितनी ख़ामोशी है तुझमें उतनी क्रोधाग्नि की ज्वाला जितना दर्द तू…

  • किन रंगों को मैं उछालूँ ?

    होली के पर्व पर मेरी ये रचना सरहद पर मुस्तैद जवानों को समर्पित। किन रंगों को मैं उछालूँ ?क्या ? उन रंगों को मैं उछालूँजिन रंगों से माँ की ओढ़नी कोबन रंगरेज़ा नितदिन रंगा करता था किन रंगों को मैं उछालूँ ?क्या ? उन रंगों को मैं उछालूँजो बचपन में दोस्तों संगहोली में खेला करता…

  • आओ नववर्ष पर नव संकल्प करें हम

    गतवर्ष ने मूँदे नयन नववर्ष ने खोले नयन गतवर्ष में थी कुछ ख़ुशियाँ और थे चुटकी भर कुछ ग़म ख़ुशियों से भर ली हमने झोली ग़मों की जला दी हमने होली आज क्षितिज पर हर्ष है उल्लास है नववर्ष का का महारास हैं आज नभ पर भी हर्ष है उल्लास है नववर्ष का का महारास…

  • “पापा”

    फादर्स डे 16.06.2013 केअवसरपरमेरीएकमौलिककृतिकविता (पापा) सरल शब्दों में आपके समक्ष रख रहा हूँ, उम्मीद करता हूँ आपको पसन्द आयेगी। पापा जब मैं लड़खड़ाता गिरता उठता चलने में अपनी अंगुली पकड़ाकर मुझे सम्भाला आपने पापा मुझे ज्ञान ना था सही गलत का बचपन में बचपन का बोध कराकर सही राह दिखाई आपने कभी अच्छा जो किया मैंने तो प्यार भी…

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