Counsellor | Writer | Poet | Lyricist | Composer | Singer.
JMFA 2017 Winner of the best lyricist.
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मुतलक़ ज़िंदगी
मुतलक़ ज़िंदगी, जो भी बशर है जी रहा असल में ज़िंदगी वही, बाकी सब फ़रेब ~ मनीष शर्मा
कुछ क़दम के फ़ासले
कुछ क़दम के फ़ासले से मुँह बनाकर के वापिस लौट गयी ज़िंदगी अब तो तन्हा रहने की आदत सी ही डाल ली है मैंने ~ मनीष शर्मा
एक ही ख़्वाब हर रात भी तो नहीं आता
कितने रोज़ याद रखोगे मुझको तुम मरने के बाद एक ही ख़्वाब हर रात भी तो नहीं आता नींदों में ~ मनीष शर्मा
बटोहिया
बटोहिया उबड़ खाबड़ हो भले डगरियारात हो स्याह या उष्ण दुपहरियाहो के चिंतामुक्त बैठो बैलगाड़ी मेंसखी सखा हम तुम्हारे बटोहिया। ~ मनीष शर्मा
इक कुफ़्र दिखी
कुछ दिलों में अपने लिये इक कुफ़्र दिखी बसेरा बदलना बेहतर, बाद जल जाने के ~ मनीष शर्मा
वाक़िफ़ करवा दिया
ज़िंदगी से आहिस्ता आहिस्ता मुख़ातिब होने चला था मैं ज़माने ने मरने के सौ तरीक़ों से वाक़िफ़ करवा दिया ~ मनीष शर्मा