Counsellor | Writer | Poet | Lyricist | Composer | Singer.
JMFA 2017 Winner of the best lyricist.
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अब आदत सी हो चली है
अब आदत सी हो चली है मेरे ज़ख़्मों को ज़माने के नमक की तुम मरहम का जिक्र ना किया करो ज़ख़्म ज़्यादा हरे होने लगते हैं ~ मनीष शर्मा
बटोहिया
बटोहिया उबड़ खाबड़ हो भले डगरियारात हो स्याह या उष्ण दुपहरियाहो के चिंतामुक्त बैठो बैलगाड़ी मेंसखी सखा हम तुम्हारे बटोहिया। ~ मनीष शर्मा
वफ़ात पाने से
वफ़ात पाने से गर निजात मिल जाती हर मसले से कोई भी इंसान अतली कश्मकश ना करता जहाँ में ~ मनीष शर्मा
अमीरी तो कभी
अमीरी तो कभी ख़्वाबों मे भी नहीं आती द्वंद तो फ़क़ीरी संग मूलभूत आवश्यकताओं से है यहाँ ~ मनीष शर्मा
इश्क़ की गर्दन झुक गई
बात फ़कत दो दिलों की थी, सौ मुँह बातें बन गई नफ़रतों से भरे शहर में, इश्क़ की गर्दन झुक गई ~ मनीष शर्मा
जब भी मिलती है
जब भी मिलती है तब वो नज़रें चुराती है मुझसे मैं भुला चुका हूँ बेवफ़ाई कोई जाके बता दो उसे ~ मनीष शर्मा